लखनऊ -/शीलेश त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में ऐसी ग्राम ,क्षेत्र व जिला पंचायतें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की जाएंगी जो पिछले पांच चुनाव में अब तक कभी आरक्षित ही नहीं हो सकीं। राज्य सरकार पंचायतीराज निदेशालय से मिले आंकड़ों और प्रस्तावों के आधार पर कुछ ऐसा ही फार्मूला तैयार करवाने में जुटी है।
प्रदेश के पिछले पांच पंचायत चुनावों में चक्रानुक्रम का रोटेशन पूरा हो गया बावजूद इसके तमाम ग्राम , क्षेत्र व जिला पंचायतें अनुसूचित जाति के लिए अभी तक आरक्षित ही नहीं हो सकीं। खासतौर पर क्षेत्र व जिला पंचायतों में वार्डों का आरक्षण तय करते समय तत्कालीन सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों ने अपनी सहूलियतों का ध्यान रखते हुए आरक्षण तय करवाया। प्रदेश सरकार वर्ष 2015 से पहले के चार पंचायत चुनावों में खासतौर पर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई सीटों की पड़ताल करवा रही है
प्रदेश में 1995 से लेकर 2010 तक के इन चुनावों में कई पंचायतें ऐसी हैं जो आरक्षित हो ही नहीं सकीं। सभी को प्रतिनिधित्व दिए जाने के लिए आरक्षण की मूल भावना का खण्डन होता रहा है। अगर जिला पंचायत अध्यक्ष के पद के लिए आरक्षण की बात करें तो पिछले पांच चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए हर चुनाव के 21 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से 105 प्रतिशत आरक्षण यानि शतप्रतिशत आरक्षण हो जाना चाहिए था। मगर अब भी कई जिला पंचायतें ऐसी हैं जो अनुसूचित जाति के लिए आज तक आरक्षित ही नहीं हो पाईं। इसी तरह सैकड़ों क्षेत्र पंचायतें भी ऐसी हैं जो आज तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नहीं हो सकी ।हजारों ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जो अनुसूचित जाति के लिए आज तक आरक्षित ही नहीं हो पाईं ,जहां तक इन चार चुनावों में ओबीसी व महिला आरक्षण का सवाल है तो वह लगभग सभी में पूरा हो चुका है। पंचायत चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग, उनके समर्थक-कार्यकर्ता व राजनीतिक दल सभी प्रदेश सरकार द्वारा आरक्षण के संबंध में जारी होने वाले शासनादेश का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार शासनादेश के जारी होने के बाद पंचायतीराज निदेशालय सभी जिलों को विकास खण्डवार प्रधानों के आरक्षण का चार्ट तैयार कर उपलब्ध करवाएगा।